छतरपुर। सदियों से होली जलाने की परंपरा को निभाने के लिए लकड़ी का उपयोग होता रहा है। अब लोग पर्यावरण के प्रति चिंतित हैं ऐसे में नईदुनिया ने आओ जलाएं कंडों की होली अभियान शुरू करके समाज को होली में लकड़ी की बजाय कंडों की होली जलाने के लिए प्रेरित कि या है। इस अभियान से बड़ी संख्या में लोग व सामाजिक संगठन जुड़ रहे हैं।
इस अभियान से जुड़कर लोग कंडों की होली जलाने का संदेश देने लगे हैं। लोग स्वीकार रहे हैं कि लकड़ी की होली बनाकर दहन करने से वन और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुंचता है, ऐसे मंें कंडों की होली जलाना ही समय की मांग और समझदारी है। वैसे भी सनातन धर्म के अनुसार गौ माता, गाय का गोबर और गौ-मूत्र सभी को पवित्र व उपयोगी माना जाता है। गोबर के बने कंडे जलाने से उसके धुंए से हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। समाज का चैतन्य वर्ग समझ गया है कि कंडों की होली जलाने से पर्यावरण का और सुख समृद्धि व स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव होता है। इतना ही नहीं इन दिनों कोरोना वायरस को भी कंडों का धुआं नष्ट करने में सक्षम है।
इनका कहना है-
वर्तमान में हम जिस तरह से प्राकृतिक प्रकोपों के शिकार हो रहे हैं, उसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। अपनी गलतियों को सुधारने के लिए प्रयास जरूरी हैं। कंडों की होलिका दहन के दौरान जो धुआं उठता है उसमें कई तरह के हानिकारक जीवाण्ुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है, साथ ही जो राख निकलती है वो भी बहुपयोगी होती है। इसलिए जरुरी है कि घरों व सार्वजनिक स्थानों पर कंडों की होली ही जलाई जाए।
डा. बीपी सूत्रकार
सहायक संचालक कृषि, छतरपुर
पर्यावरण के लिहाज से लकड़ी का दुरुपयोग रोकना व जंगलों को बचाना जरुरी है। कंडों की होली जलाने से उसके धुंए में बदलते मौसम में उत्पन्न होने वाली कई तरह की बीमारियों से बचाव की क्षमता होती है। सामाजिक सरोकारों से जुड़े इस मुददे को उठाकर नईदुनिया ने सराहनीय प्रयास कि या है। मैं अपने आसपास के लोगों को भी कंडों की होलिका दहन करने के लिए प्रेरित कर रहा हूं।
डा. आरके धमनया
चिकि त्सक, जिला अस्पताल छतरपुर
लकड़ी की होली जलाने की बजाय थोड़ी सूझबूझ से यदि कंडों की होली जलाएं तो पर्यावरण की सुरक्षा भी हो जाएगी और इसी बहाने गोशालाओं को भी कु छ योगदान करके पुण्य के भागी बन सकें गे। तेजी से बिगड़ रहे पर्यावरण को बचाने के लिए कंडों की होली जलाने का संकल्प लेना होगा। आमतौर पर घरों में तो गोबर की बलगुरियां बनाकर होली जलाई जाती है, लेकि न चौराहों पर होली में पेड़ों को जलाने से रोकना होगा। आइए, क्यों न इस बार हम होली में कंडे जलाने का संकल्प लें।
आभा सक्सेना
लेखिका, छतरपुर
कंडो से होली जलाने की परंपरा काफी पुरानी है। कु छ कारणों से कंडों की अनुपलब्धता के कारण लकड़ी से होलिका दहन होने लगा। जिससे जंगल कटने लगे और पर्यावरण पर असर पड़ने लगा। अब लोग पर्यावरण व वनों की सुरक्षा करने के बारे में जागरुक होकर कंडों की होली जलाने की सोच बनाकर रहे हैं। नईदुनिया के इस अभियान से इस सोच को बल मिल रहा है।
मिथिला अनुरागी
भाजपा नेत्री, हरपालपुर