छतरपुर। तेजी से बिगड़ते पर्यावरण को बचाने के लिए लोग इस बात को स्वीकार रहे हैं कि लकड़ी की होली बनाकर दहन करने से वन और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुंच रहा है। ऐसे में कंडों की होली जलाना जरूरी है।
समाज के लोग इस बात को समझ गए हैं कि कंडों की होली जलाने से पर्यावरण का संरक्षण होता है और सुख समृद्धि व स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। गोबर के बने कंडे जब जलाए जाते हैं तो उसके धुएं में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बैक्टीरिया स्वतः नष्ट हो जाते हैं। नईदुनिया के सामाजिक सरोकार से जुड़े आओ जलाएं कंडों की होली अभियान को लोग स्वीकार कर सराह रहे हैं। कई लोगों ने इस बार 9 मार्च को कंडों की होली सजाकर उसकी पूजा के उपरांत जलाने का संकल्प लिया है। लोगों को घर-घर जाकर कंडों की होली जलाने के लिए प्रेरित भी कि या जा रहा है।
इनका कहना है
इस समय प्राकृतिक प्रकोपों का कहर बढ़ रहा है। इसके लिए हम सब जिम्मेदार हैं। अपनी गलतियों को सुधारने के लिए प्रयास के रूप में होलिका दहन में गोबर के कंडों का उपयोग करना जरूरी है। कंडों के धुएं से वातावरण के बैक्टीरिया तो खत्म होते हैं। इसकी राख भी उपयोगी होती है।
डॉ. धर्मेंद्र सोनी
कांग्रेस नेता, बड़ामलहरा
हम सभी को हरे-भरे पेड़ों को होली में नहीं जलाना चाहिए। इसके लिए बड़ी संख्या में पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। इस बात का संकल्प लेना होगा कि पेड़ों की लकड़ी की बजाय कंडों की होली जलाएं। इसके लिए अपने आस-पास की गौशाला से संपर्क करके गोबर के कंडो की होली बनाए और उसे जलाकर पर्यावरण को बचाने में सहयोग करें।
पवन मिश्रा
अध्यक्ष, हिंदू उत्सव समिति
धर्मग्रंथों के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है। ऐसे में गाय के गोबर से बने कंडों की होली जलाने से इस पर्व की पवित्रता और बढ़ जाएगी। कंडों का धुआं वातावरण को शुद्ध करेगा और लकड़ी को जलने से बचाकर हम पर्यावरण को बचाने में अपना योगदान दे सकेंगे। नईदुनिया की यह पहल सराहनीय है।
बरखा मिश्रा
नारी शक्ति प्रमुख, हिंदू उत्सव समिति