70 बच्चों की 'सीमा बुआ' को शहर का हर नागरिक करता है 'सैल्यूट'

अंबिकापुर । अंबिकापुर जैसे छोटे शहर में किसी महिला को चार पहिया वाहन चलाता देख कुछ वर्ष पहले तक लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे। अब अधिकांश महिलाएं शहर में चार पहिया वाहन फर्राटे से चलाते सड़क पर निकल जाती हैं किंतु इसी शहर में एक महिला ने पहली बार जब बच्चों को स्कूल लाने ले जाने स्कूल वैन चलाना शुरु किया तो शहर के लोग उसकी प्रशंसा करने लगे और अब तो हर अभिभावक इस महिला को सैल्यूट करता है। अपने बच्चों को स्कूल भेजने इसी वेन का संचालन करने वाली महिला पहली पसंद बन गई है क्योंकि अभिभावक इस महिला वैन चालक पर इतना भरोसा करती हैं कि उन्हें अपने बच्चों को स्कूल भेजने में न कोई संकोच होता है और न आंतरिक भय सताता है।


मिशन चौक निवासी उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली सीमा प्रजापति शहर में पिछले 4 वषोर् से स्कूल वैन का संचालन कर रही है। 70 बच्चों को हर रोज घर से लेना और स्कूल छोड़ना सीमा का मूल काम बन गया है। सीमा कई बेरोजगार महिलाओं के लिए आइकॉन बन गई हैं। वर्ष 2015 में तत्कालीन कलेक्टर श्रीमती ऋतु सैन ने अंबिकापुर महिलाओं को ऑटो चलाने और वैन चलाने का प्रशिक्षण दिया तो लोगों ने तरह-तरह की बातें शुरू कर दी थी। लोगों को आश्चर्य लगा कि शहर में महिलाएं ऑटो कैसे चलाएंगी? इन्हीं दर्जनभर महिलाओं के बीच शौकिया तौर पर अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने व वैन चलाना सीखी सीमा प्रजापति ने अपने बच्चों को स्कूल लाने ले जाने के दौरान ही अन्य बच्चों को भी बिठाना शुरू किया। बाद में उसे लगा कि क्यों न इसे व्यवसाय के रूप में करें जिससे आर्थिक आमदनी भी हो। इसके बाद शुरू हुआ सीमा का वह सिलसिला जो चन्द बच्चों के साथ शुरू हुआ और 70 बच्चों तक पहुंच गया। सीमा हर रोज रोज लोगों के घर जाती है और उनके बच्चों को स्कूल छोड़ती है। धीरे-धीरे अभिभावक इतने सुरक्षित महसूस करने लगे कि अब सीमा को शहर के हर हिस्से में वैन लेकर पहुंचने लगी। सीमा ने इसी कारण से अपनी बीच के कई महिलाओं को वह चलाना सिखाया और महिलाएं भी इसी काम में लग गई हैं और आर्थिक आय अर्जित कर रही हैं। महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी सीमा अब शहर के बड़ी संख्या में बच्चों की सीमा बुआ बन गई हैं। शहर के भीड़-भाड़ इलाकों में भी जिस सावधानी और सुरक्षित तरीके से सीमा चलाती हैं उसे न सिर्फ बच्चे सुरक्षित स्कूल से घर पहुंचते हैं बल्कि अभिभावक भी सीमा की वैन चालन दक्षता को देख सैल्यूट करते हैं। सुबह 7 बजे से सीमा के काम का सिलसिला शुरू होता है और शाम 4 बजे तक चलता है। इस बीच न जाने कितने लोग सीमा को रास्ते में मिलते हैं और बच्चों की भीड़ के साथ देख सैल्यूट करते हैं। सीमा की देखा देखी शहर में कई महिलाएं अब चार पहिया वाहन चलाने लगी हैं और काम करने लगी है।


 

तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सैन की देन-


सीमा बताती हैं मैंने तो अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने वैन खरीदा और चलाना सीखा। तत्कालीन कलेक्टर ऋतु सैन ने ऐसा प्रोत्साहित किया कि मैंने इसे इससे व्यवसाय के तौर पर शुरू कर दिया। उन्होंने ऋण पर लिए गए पहले वेन की चाबी प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के हाथों मुझे थमाई थी। उन्हें में हमेशा याद करती हूं। उन्होंने इस शहर में महिलाओं के लिए बहुत कुछ किया है, महिलाओं को बहुत राह दिखाई है। उन्हीं के प्रेरणा से आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं।


 

उच्च शिक्षा प्राप्त की, मिली थी नौकरी-


सीमा बताती है कि मैंने बीएचएससी बीएड की पढ़ाई की है। शिक्षा विभाग में मेरी नौकरी भी लग रही थी किंतु दूरी के कारण मैंने नौकरी नहीं की। मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं इस शहर में बच्चों की सेवा के लिए हर रोज वैन चलाऊंगी। मैं कहीं शिक्षा भी देती तो शासकीय नौकरी में मुझे सिर्फ वेतन मिलता सम्मान नहीं मिलता पर आज मुझे इस शहर में सुबह से शाम तक सेल्यूट करने वालों की कमी नहीं रहती। मैं शहर के 70 बच्चों की सीमा बुआ नहीं बन पाती। अगर मैं शासकीय नौकरी में होती पर आज हर बच्चों के साथ उनके अभिभावकों का भी प्रेम मुझे नहीं मिलता है, यही मेरी असली कमाई है।


नकारात्मक विचारों से महिलाएं रहें दूर-


सीमा कहती हैं कि महिलाओं को कभी भी किसी तरह की नकारात्मक विचारों को अपने पास फटकने नहीं देना चाहिए। मन में हमेशा सकारात्मक विचार लाएं और समाज में अच्छा करने क्या सोचे, कोई काम महिलाओं से दूर नहीं। हर काम आसान है बस बात जज्बे और सकारात्मक सोच की है। मैंने कभी चिंता नहीं की कि मुझे सरकारी नौकरी नहीं मिली। मैं सरकारी नौकरी से ऊपर उठकर काम कर रही हूं जिससे मुझे समाज में नई पहचान मिली है।


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