बढ़नीझरिया की पहली पंडो बेटी, जो मास्टरनी बन औरों के लिए बनी मिसाल

अंबिकापुर । शहर से आठ किलोमीटर दूर बनारस मार्ग पर स्थित चठिरमा के बढ़नीझरिया के पण्डो जनजाति बाहुल्य गांव में पिछड़ी माने जाने वाले पण्डो परिवार के एक महिला ने शिक्षा हासिल कर अपने पैरों पर खड़े हो अब बेहतर शिक्षा देने का काम कर रही है। 1951-52 में घनघोर जंगल के बीच यहां पंडो जाति के छह-सात परिवार आकर बसे थे। इनकी आबादी अब 150 परिवार तक पहुंच गई है। यहां न तो शिक्षा का साधन था, न ही स्वास्थ्य सुविधा थी। ऐसे ही परिवार की पहली लड़की हॉस्टल में रहकर 12वीं की शिक्षा हासिल की। बाद में अंबिकापुर में रहने वाले एक परिवार ने उसकी पढ़ाई के प्रति रुचि को देखकर उसे बौरीपारा में स्थित अपने किराए के मकान में रहने की जगह दी और कॉलेज की तालीम लेकर अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया।


उक्त परिवार ने उच्च शिक्षा लेने में उसकी हरसंभव मदद की और बीए की शिक्षा लेने के बाद पंडो परिवार की इस लड़की ने शिक्षाकर्मी वर्ग तीन का फार्म जमा किया। वर्ष 2005 से रेवापुर प्राथमिक स्कूल में शिक्षा देते आज नियमित शिक्षिका के रूप में वह सेवा दे रही है। बढ़नीझरिया गांव की उर्मिला पंडो पिता दिलराज पंडो अपने गांव की पहली लड़की थी, जो पढ़ाई के साथ बेहतर भविष्य को लक्ष्य बनाकर चली और शिक्षिका के रूप में अपनी पहचान बनाई। यही नहीं उसने अपने भाई-बहनों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित किया, लेकिन वे उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए। फिर भी अपने एक भाई नवल साय को आठवीं तक की तालीम लेने के बाद इस योग्य बना दी कि वह प्रयास विद्यालय बिशुनपुर अंबिकापुर में शासकीय सहायक के पद पर पदस्थ है। भाई की नौकरी के लिए उससे एक दलाल ने कुछ रुपये भी ऐंठ लिए थे। एक बहन परमिला शासकीय स्कूल में स्वच्छक है। उर्मिला की जब गांव में मास्टरनी बाई के रूप में पहचान बनी तो अन्य लोगों में भी बेटे के साथ बेटियों को पढ़ाने की ललक जगी। इसी का परिणाम है आज पंडो बाहुल्य बढ़नीझरिया गांव की 15 बेटियां शिक्षाकर्मी बन चुकी हैं। शिक्षाकर्मी बनने वाले लड़कों की संख्या नौ है। 10-11 लड़के-लड़की चतुर्थ वर्ग कर्मचारी के रूप में सेवा दे रहे हैं। शासकीय नौकरी में लड़कों से अधिक लड़कियों का दबदबा होने के पीछे उर्मिला की भूमिका प्रेरक की है, जो अपनी सहेलियों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करती थी। पहले घर से बाहर भेजकर लड़कियों को पढ़ाने में अभिभावकों की रुचि नहीं थी। उर्मिला के नक्शेकदम पर चलकर स्व.महेश पंडो की बेटी सविता भी शिक्षाकर्मी बनी। उर्मिला विवाह नहीं होते तक गांव की लड़कियों को शिक्षा की धारा से जोड़ने में पीछे नहीं रही। गरीबी के बाद भी शिक्षित होकर मास्टरनी बनी उर्मिला को देख गांव के लोगों को शिक्षा का महत्व समझ में आया और वे बेटियों को प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा लेने के लिए स्कूल भेजने लगे।


गांव में 1986-87 में स्कूल शुरू हुआ, जो पंडो समुदाय के पटेल के रूप में चिन्हित बहादुर राम पंडो के यहां संचालित होता था। दिलराज पंडो बताता है कि उसकी इच्छा बेटे-बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाने की थी लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी। उर्मिला पांचवीं तक गांव में शिक्षा लेने के बाद सूरजपुर के हॉस्टल में रहकर पढ़ने लगी। 10वीं तक पढ़ने के बाद आगे की शिक्षा के लिए रहने की व्यवस्था आड़े आ रही थी क्योंकि 11वीं-12वीं के विद्यार्थियों के लिए हॉस्टल की सुविधा यहां नहीं थी। ऐसे में हॉस्टल इंचार्ज से बेटी को रहने की अनुमति देने का आग्रह पिता ने किया और दो वर्ष तक हॉस्टल में राशन का सामान पहुंचाता, यहां वह खुद खाना बनाती और पूरी तल्लीनता से पढ़ाई करके 12वीं की शिक्षा ग्रहण की। वर्तमान में उर्मिला पति उदय कुमार पंडो, रेवापुर के शासकीय स्कूल में बच्चों को शिक्षा देते सफल जीवनयापन कर रही है।


कंदमूल के सहारे कटा लंबा समय


पंडो परिवार की उर्मिला का जिस परिवार में जन्म हुआ, वे जंगल की लकड़ी में छींद की छप्पर के नीचे रहते थे। दिलराज बताता है कि शुरुआती दौर में महीनों कंदमूल पेट भरने का सहारा था। बाद में इनके जीवनयापन के लिए नागर-बैल और पांच साल के राशन की व्यवस्था सरकार की। डॉ.राजेन्द्र प्रसाद के राष्ट्रपति रहते तक तो इनकी सुध ली गई, इनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें सामान्य लोगों की तरह देखा जाने लगा। ऐसे में ये परसा के पेड़ से लाही-लासा (गोंद) निकालते और इसे साहूकार को देकर चावल, नमक, तेल लेते थे। नगदी लेन-देन की कोई सुविधा नहीं थी। इससे पेट की आग तो बुझती, लेकिन कोई सामान खरीदना हो तो वे मन मसोसकर रह जाते थे। कालांतर में पंडो विकास प्राधिकरण बना, इनके हालात पर अधिकारियों की नजर गई और धीरे-धीरे झोपड़ी से मकान की ओर ये अग्रसर हुए।


उर्मिला के बाद कई बनीं शिक्षिका


दिलराज पंडो की पुत्री उर्मिला के बाद गांव की सविता पिता स्व.महेश पंडो, पुष्पा पिता ददई राम पंडो, चंपा व सनमेत द्वय पिता शोभित पंडो, चिंता पिता रामजीत पंडो, निर्मला पिता स्व.पन्नालाल पंडो, राजेश्वरी पिता रामभरोस पंडो, जगेश्वरी पिता दशरू राम पंडो, बिंदु व योगिता द्वय पिता नरेश पंडो, सावित्री पिता शिवनाथ पंडो, पार्वती पिता सुखसाय पंडो, रामकेली पिता रामचंदर पंडो, अनीता पिता देवबिहारी पंडो शिक्षाकर्मी बतौर विभिन्न स्कूलों में सेवा दे रही हैं।


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