बहादुरपुर अस्पताल में डॉक्टर, फार्मासिस्ट, टेक्नीशियन से लेकर स्वीपर तक के पद खाली

बहादुरपुर । मंगलवार दोपहर 11 बजे हैं लेकिन ओपीडी में कोई डॉक्टर नहीं है। जबकि अस्पताल सुबह 9 बजे खुल चुका है। इलाज कराने की उम्मीद से आए कुछ मरीज इधर-उधर भटक रहे हैं, तो कुछ डॉक्टर के आने के इंतजार में बैठे हैं। अस्पताल में पदस्थ एक चिकित्सक अभी अपने कक्ष से बाहर नहीं निकले तो दूसरे मुंगावली से अब तक नहीं आए। ओपीडी मे जिसकी ड्यूटी है, उसका भी मोबाइल नंबर बंद आ रहा है। प्रसूतिगृह में पिपरौदा निवासी एक महिला के साथ आईं कुछ महिलाएं नर्स को ढूंढते हुए यहां से वहां चक्कर काट रही थी। इकोदिया निवासी उमंग दांगी ने बताया कि उसकी मां को बुखार आ रहा है, जिसका इलाज कराने वह 7 किलोमीटर दूर से यहां आया है, लेकिन दो घंटे बाद भी इलाज के लिए पर्चा नहीं बन सका।


 

कुछ इस तरह के हाल हैं, 130 वर्ष पुरानी बहादुरपुर अस्पताल के। कहने को इस अस्पताल प्रांगण से ही खंड चिकित्सा अधिकारी कार्यालय संचालित है। जिसके माध्यम से 5 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के 7 चिकित्सकों समेत 67 स्वास्थ्य कर्मियों की वेतन का भुगतान होता है। बहादुरपुर अस्पताल की व्यवस्थाएं पटरी से उतर चुकी हैं। डॉक्टर समय पर बैठते नहीं है, फार्मासिस्ट की जगह खाली है, ड्रेसर दो दिन पहले ही ज्वाइन हुआ था जो सोमवार को अनुपस्थित रहा। टेक्निशियन सप्ताह में केवल 3 दिन ही आते हैं। अधिकतर नर्सें और एएनएम मुख्यालय पर निवास नहीं करतीं। खंड चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में पदस्थ कर्मचारियों का आना-जाना भी यात्री बसों के टाइम-टेबल से चलता है। यही वजह है कि यहां आने वाले मरीजों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। ओपीडी रजिस्टर के मुताबिक कुछ तीन साल पहले जहां एक दिन में सौ से अधिक मरीज पर्चा बनवाते थे, अब उनकी संख्या 50-60 पर सिमटकर रह जाती है।


 

निजी सेंटरों पर करा रहे जांच


टेक्निशियन के प्रतिदिन उपलब्ध नहीं रहने से मलेरिया, टाइफाइड, ब्लड ग्रुप, हीमोग्लोबिन और टीबी की जांच के लिए या तो निजी पैथोलॉजी पर जाना पड़ता है या फिर 40 किलोमीटर दूर अशोकनगर और 18 किलोमीटर दूर मुंगावली। एक चिकित्सक डॉ. वायएस तोमर कई वर्षों से ओपीडी में नहीं दिखाई दिए, दूसरे चिकित्सक डॉ. रघुराज सिंह राजपूत मुंगावली से अप-डाउन करते हैं। उनकी सेवा अवधि भी चार से पांच घंटे ही रहती है। एएनएम और स्टाफ नर्सों की संख्या 10 है लेकिन अधिकतर उप-स्वास्थ्य केंद्रों पर अटैच हैं। जो पीएचसी पर रहती भी हैं, उनकी अनियमितताओं से महिलाएं प्रसव के लिए अब अशोकनगर या मुंगावली जाने लगी हैं। प्रसव का औसत भी 100-120 प्रतिमाह से गिरकर 60-65 तक आ गया है।


स्वीपर के पद घटाए, पीएम के लिए करना पड़ता है इंतजार


प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर स्थाई स्वीपर का पद करीब सात वर्षों से रिक्त है। डेढ़ माह पहले तक दो स्वीपर जच्चाखाना में और एक पोस्टमार्टम के लिए काम कर रहे थे। जिनमें से ठेकेदार ने दो स्वीपर हटा दिए। अब जच्चाखाना में 24 घंटे एकमात्र स्वीपर हैं तो पोस्टमार्टम के लिए 35 किलोमीटर दूर मल्हारगढ़ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से स्वीपर बुलाया जाता है। ऐसे में पोस्टमार्टम के लिए कई घंटों की देरी होती है। वार्ड ब्वॉय एक भी नहीं है। बीएमओ डॉ. वायएस तोमर के मुताबिक वह शासन स्तर पर पदों की पूर्ति के लिए पत्र लिख चुके हैं लेकिन कोई सकारात्मक प्रत्युउत्तर नहीं मिला। यहां कुछ कर्मचारी ऐसे भी पदस्थ हैं जिनके पास कोई काम नहीं है जिनमें मलेरिया सुपरवाइजर, नेत्र सहायक आदि है। बीएमओ का कर्मचारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। जिससे व्यवस्थाएं सुचारू रूप से नहीं चल रहीं है।


130 वर्ष पुरानी डिस्पेंसरी, 50 वर्षों से हो रहे हैं प्रसव


तत्कालीन ग्वालियर महाराज माधवराव सिंधिया प्रथम द्वारा 1890 में कस्बा बहादुरपुर को सिविल डिस्पेंसरी की सौगात दी गई थी। तब यहां चिकित्सक, कंपाउंडर, ड्रेसर और स्वीपर के पद स्वीकृत थे। इलाज के अलावा डिस्पेंसरी में पोस्टमार्टम भी होते थे। 1967 में उक्त डिस्पेंसरी को तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्र के दौर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का दर्जा मिला। नए भवन का उद्घाटन 1977 में सकलेचा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे शीतला सहाय ने किया था। यहां प्रसव की सुविधा शुरू हो चुकी थी। यहीं से खंड चिकित्सा अधिकारी कार्यालय संचालित होता रहा। मौजूदा दौर में अस्पताल सबसे बुरे दौर में है।


'विभाग स्वंय परेशान है, एक दर्जन डॉक्टरों की जिले में पोस्टिंग हुई थी लेकिन किसी ने भी ज्वाइन नहीं किया। बहादुरपुर में औरों की अपेक्षा काफी स्टाफ है, यह बीएमओ की विफलता है कि वो उनसे काम नहीं ले पा रहे हैं। मेरे स्तर से एक बैठक कर वहां की व्यवस्थाएं सुधारने की कवायद की जाएगी।


- डॉ. जसराम त्रिवेदिया, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी।


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