अशोकनगर शीतला अष्टमी का त्यौहार हर वर्ष मार्च के महिने में मनाया जाता है। रंग पंचमी के बाद आने वाली अष्टमी शीतला अष्टमी के रूप में मनाई जाती है। अशोकनगर में शीतला माता के प्रसिद्घ स्थान पर महिलाओं ने पहुचकर माता की भक्तिभाव से पूजा-अर्चना की और उन्हें भोग लगाया। यह भोग उन पकवानों का लगाया जाता है जिन्हें एक दिन पहले महिलाओं के द्वारा अपने घरों पर तैयार किया जाता है। इन्हें बसोडा भी कहा जाता है अर्थात एक दिन पहले बनाया गया भोजन। शीतला माता के इस दरबार में महिलाओं ने घंटों बैठकर माता की आराधना की। इस दौरान जल चढ़ाया गया और माता को भोग लगाया गया। कहते है कि यदि माता को शीतला अष्टमी के दिन भोग लगाया जाता है तो माता उनके घर में सुख-समृद्घि और सम्पन्नता लाती है। यह मुख्य रूप से चावल और घी का भोग लगाने का दिन है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलना चाहिए और न ही घर में खाना बनना चाहिए। इसलिए एक दिन पहले ही महिलाएं सप्तमी के दिन अपने घर पर भोजन तैयार करती है और उससे अगले दिन उपयोग में लाया जाता है। इस दौरान अशोकनगर शहर की महिलाएं बड़ी संख्या में यहां के प्रसिद्घ शीतला माता के दरबार में पहुची। यह वही दरबार है जहां नवरात्रि पर्व के दिनों में हजारों महिलाएं माता की आराधना करने पहुचती है। यहां अभिषेक करने के लिए सुबह 4 बजे से ही महिलाओं का पहुंचना आरंभ हो जाता है। शहर में किसी भी युवक-युवती का विवाह हो पहले वह शीतला माता के दरबार में माता पूजन के लिए जाता है उसके बाद मांगलिक कार्यों की शुरूआत होती है।
शहर की जुनेजा परिवार की महिलाएं पिछले 25 वर्षों से सामूहिक रूप से एकसाथ बैठकर माता के दरबार में शीतला अष्टमी का पर्व मना रही है। शीतला अष्टमी के दिन यह महिलाएं सास-बहू सब एक साथ मिलकर शीतला माता की आराधना करती है। सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक उनकी एक ही स्थान पर बैठकर आराधना होती है। यह स्थान शीतला माता का दरबार है। उनका यह क्रम हर वर्ष जारी है। इस वर्ष भी उन्हें माता की आराधना करते देखा गया।